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अहमदाबाद: गुजरात बीजेपी का अभेद्य गढ़ है। बीजेपी पिछले 28 सालों से जहां राज्य की सत्ता पर काबिज है तो वहीं दूसरी तरफ तमाम नगर निगमों से लेकर नीचे की संस्थाओं पर पार्टी के प्रभुत्व है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात में बीजेपी और अधिक मजबूत हुई। इसकी वजह था आपणो नरेंद्र...आपणो पीएम (अपना नरेंद्र अपना पीएम)। यही वजह थी कि पार्टी ने पहले 2014 और फिर 2019 में क्लीन स्वीप किया और 26 की 26 सीटें जीत लीं। 2009 में 11 लोकसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस शून्य पर सिमट गई। 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए अब खोन को कुछ नहीं बचा है। कांग्रेस अगर बीजेपी को टक्कर दे पाती है तो इस फाइट बैक के तौर देखा जाएगा, हालांकि सूरत में बीजेपी की निर्विरोध जीत दर्ज करके बीजेपी ने मनौवैज्ञानिक तौर पर दबाव बनाया है। ऐसा पहली बार होगा जब राज्य में सिर्फ 25 लोकसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे।
कप्तानी पारी से थमेगा गुस्सा?
गुजरात के नतीजों को लेकर बीजेपी बेफ्रिक दिख रही है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि बीजेपी तीसरी बार क्लीन स्वीप की हैट्रिक लगा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दो दिन के दौरे में कुल छह सभाएं की। बनासकांठा से जामनगर (उत्तर गुजरात से सौराष्ट्र) तक उन्होंने क्षत्रिय आंदोलन का जिक्र नहीं किया। उनकी रैली में क्षत्रिय आंदोलन का कारण बने परशोत्तम रूपाला को गैरहाजिर रहे। पीएम मोदी ने कांग्रेस को निशाने पर रखा और ओबीसी समुदाय को आकर्षित करने की कोशिश की। पीएम मोदी ने साफ कहा कि उनके जीते जी कोई भी ओबीसी आरक्षण को धार्मिक आधार पर नहीं बांट सकता है। उनका कहना था कि मुस्लिमों को नहीं दिया जा सकता है। ऐसे में अब जब पांच मई की शाम को चुनाव प्रचार का शोर थमेगा। तब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या पाटीदार आंदोलन की तरह बीजेपी को क्षत्रियों की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ेगी? या फिर मोदी का मास्टरस्ट्रोक चलेगा? पीएम मोदी ने अपने दौरे में क्षत्रियों के बड़े राजवी जाम साहब से आशीर्वाद लेकर बड़ा संदेश दिया था।
क्षत्रियों के अधिक वोट वाली सीटें: खेड़ा और आणंद में सबसे ज्याद वोट
डैमेज कंट्रोल पर दराेमदार
सौराष्ट्र हेडलाइन के एडीटर जगदीश मेहता कहते हैं कि यह सही है कि क्षत्रिय किसी सीट का नतीजा नहीं बदल सकते हैं लेकिन अगर वे लामबंद होकर वोट करेंगे तो बीजेपी निश्चित तौर पर कुछ सीटों को कम अंतर से जीत सकती है। मेहता कहते हैं कि पीएम मोदी ने अपने दौरे में कप्तानी पारी खेली है। आगे राज्य बीजेपी के हाथों में दराेमदार है कि पार्टी का संगठन कितना डैमेज कंट्रोल कर पाता है।
क्या है कांग्रेस की रणनीति?
गुजरात में अपना सबकुछ गंवा चुकी कांग्रेस के सामने करो या मरो की स्थिति है। कांग्रेस पार्टी को उम्मीद है कि अगर क्षत्रियों का साथ मिलता है तो पार्टी कम से कम सात से आठ सीटों पर अच्छी फाइट दे सकती है। पार्टी खेड़ा, आणंद, जामनगर (क्षत्रियों के साथ दूसरे अन्य समीकरण), बनासकांठा और साबरकांठा की सीटों को लेकर काफी आशांन्वित है। इसके आलावा पार्टी को अमरेली, वलसाड और पाटण की सीटों पर भी अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। भावनगर और भरूच की सीटों पर आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ रही है।
कप्तानी पारी से थमेगा गुस्सा?
गुजरात के नतीजों को लेकर बीजेपी बेफ्रिक दिख रही है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि बीजेपी तीसरी बार क्लीन स्वीप की हैट्रिक लगा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दो दिन के दौरे में कुल छह सभाएं की। बनासकांठा से जामनगर (उत्तर गुजरात से सौराष्ट्र) तक उन्होंने क्षत्रिय आंदोलन का जिक्र नहीं किया। उनकी रैली में क्षत्रिय आंदोलन का कारण बने परशोत्तम रूपाला को गैरहाजिर रहे। पीएम मोदी ने कांग्रेस को निशाने पर रखा और ओबीसी समुदाय को आकर्षित करने की कोशिश की। पीएम मोदी ने साफ कहा कि उनके जीते जी कोई भी ओबीसी आरक्षण को धार्मिक आधार पर नहीं बांट सकता है। उनका कहना था कि मुस्लिमों को नहीं दिया जा सकता है। ऐसे में अब जब पांच मई की शाम को चुनाव प्रचार का शोर थमेगा। तब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या पाटीदार आंदोलन की तरह बीजेपी को क्षत्रियों की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ेगी? या फिर मोदी का मास्टरस्ट्रोक चलेगा? पीएम मोदी ने अपने दौरे में क्षत्रियों के बड़े राजवी जाम साहब से आशीर्वाद लेकर बड़ा संदेश दिया था।
क्षत्रियों के अधिक वोट वाली सीटें: खेड़ा और आणंद में सबसे ज्याद वोट
क्रं सं. | लोकसभा सीट/प्रत्याशी (बीजेपी Vs कांग्रेस) | क्षत्रियों के कुल वोट (अनुमानित) |
1 | खेड़ा (देवुसिंह चौहाण बनाम कालु सिंह डाभी) | 9 लाख |
2 | आणंद (मितेश पटेल बनाम अमित चावड़ा) | 8.66 लाख |
3 | सुरेंद्र नगर (चंदूभाई शिरोहा बनाम ऋत्विक मकवाणा) | 2.23 लाख |
4 | छोटा उदेपुर (जशु राठवा बनाम सुखराम राठवा) | 2.07 लाख |
6 | राजकोट (परशोत्तम रूपाला बनाम परेशा धानानी) | 1.89 लाख |
7 | अहमदाबाद पश्चिम (दिनेश मकवाणा बनाम भरत मकवाणा) | 1.7 लाख |
8 | भावनगर (निमूबेन बाम्बनिया बनाम उमेश मकवाणा) | 1.60 लाख |
9 | गांधीनगर (अमित शाह बनाम सोनल पटेल) | 1.5 लाख |
10 | वडोदरा (हेमांग जोशी बनाम जशपाल पढियार) | 1.39 लाख |
11 | बनासकांठा (रेखाबेन चौधरी बनाम जेनीबेन ठाकाेर) | 1.38 लाख |
12 | पाटण (भरत सिंह डाभी बनाम चंदन जी ठाकोर) | 1.38 लाख |
13 | जामनगर (पूनम माडम बनाम जेपी मारविया) | 1.35 लाख |
डैमेज कंट्रोल पर दराेमदार
सौराष्ट्र हेडलाइन के एडीटर जगदीश मेहता कहते हैं कि यह सही है कि क्षत्रिय किसी सीट का नतीजा नहीं बदल सकते हैं लेकिन अगर वे लामबंद होकर वोट करेंगे तो बीजेपी निश्चित तौर पर कुछ सीटों को कम अंतर से जीत सकती है। मेहता कहते हैं कि पीएम मोदी ने अपने दौरे में कप्तानी पारी खेली है। आगे राज्य बीजेपी के हाथों में दराेमदार है कि पार्टी का संगठन कितना डैमेज कंट्रोल कर पाता है।
क्या है कांग्रेस की रणनीति?
गुजरात में अपना सबकुछ गंवा चुकी कांग्रेस के सामने करो या मरो की स्थिति है। कांग्रेस पार्टी को उम्मीद है कि अगर क्षत्रियों का साथ मिलता है तो पार्टी कम से कम सात से आठ सीटों पर अच्छी फाइट दे सकती है। पार्टी खेड़ा, आणंद, जामनगर (क्षत्रियों के साथ दूसरे अन्य समीकरण), बनासकांठा और साबरकांठा की सीटों को लेकर काफी आशांन्वित है। इसके आलावा पार्टी को अमरेली, वलसाड और पाटण की सीटों पर भी अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। भावनगर और भरूच की सीटों पर आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ रही है।
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